एड्स का फुल फॉर्म (Full form of AIDS) – एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम (Acquired immuno Deficiency Syndrome) है। AIDS का हिंदी में शाब्दिक अर्थ अर्जित प्रतिरक्षक कमी संलक्षण होता है।
एड्स का फुल फॉर्म (AIDS full form) | एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immuno Deficiency Syndrome) |
हिंदी में एड्स का फुल फॉर्म (AIDS full form in Hindi) | अर्जित प्रतिरक्षक कमी संलक्षण |
एड्स कि कब खोज की गई | 1981 में |
खोज करने वाले वैज्ञानिक का नाम | लुक मौन्टैग्नाइयर (Montagnier) |
एड्स रोग कि किस जीव से हुई उत्पत्ति | चिम्पांजियों से |
एड्स रोग की खोज (Discovery of AIDS disease)
वैज्ञानिकों का मानना है कि एड्स रोग की उत्पत्ति चिम्पांजियों से अफ्रीका में हुई, इसके बाद धीरे-धीरे यह संक्रमण मनुष्यों तक फैल गया। इस रोग का पता सबसे पहले सन 1981 में अमेरिका में लगाया गया था।
यह विषाणु पहली बार सन् 1983 में फ्रांस के लुक मौन्टैग्नाइयर (Montagnier) और उनके सहयोगी द्वारा पृथक किया गया। भारत में एड्स का संक्रमण सबसे पहली बार 1986 में चेन्नई से रिपोर्ट हुआ। सन् 2000 तक विश्वभर में 3.80 मिलियन से अधिक लोग एड्स से संक्रमित हो चुके है।
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एड्स का फुल फॉर्म (Full form of AIDS)
एड्स का फुल फॉर्म – एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम है (The full form of the AIDS is – Acquired Immune Deficiency Syndrome).
AIDS रोग HIV (ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी विषाणु / Human immunodeficiency virus) नामक विषाणु के कारण उत्पन्न होता है। इस अवस्था में शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरक्षा व्यवस्था नष्ट हो जाती है, जिसके शरीर की रोग निरोधी क्षमता काफी कम हो जाती है एवं शरीर विभिन्न प्रकार के रोगो से ग्रसित हो जाता है और वह धीरे-धीरे कमजोर होता चला जाता है।
रोगकारक विषाणु की विशेषताएं (Characteristics of AIDS Virus)
AIDS रोग का कारक अर्थात ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी विषाणु RNA युक्त रेट्रोवायरस होता है। रेट्रोवायरस की बाहरी परत ग्लाइकोप्रोटीन की बनी होती है। इसके बीच में प्रोटीन का आवरण तथा अंदर एकसूत्री RNA के दो अणु होते हैं।
संक्रमण के पश्चात ये विषाणु शरीर में 6 से 10 वर्षों तक निष्क्रिय रूप से पड़े रहते है। संक्रमण के 12 हफ्ते बाद ही रक्त की जांच से यह विदित हो जाता है, कि HIV विषाणु शरीर में प्रविष्ट हो चुका है। ऐसे व्यक्ति को HIV पॉजिटिव कहते।
HIV संक्रमण का विकास (Development of HIV infection)
- जब HIV किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर उसे संक्रमित करता है तो यह शरीर की Helper T- cells को मार देता है जिससे रोगी के शरीर में प्रतिरक्षाओं का निर्माण प्रभावित होता है। इससे व्यक्ति कुछ हफ्तों में ही एक अस्थाई बीमारी से ग्रसित होने का अनुभव करता है जो कुछ-कुछ इनफ्लुएंजा जैसे होती है।
- 6 से 10 वर्ष पश्चात व्यक्ति के गर्दन तथा बगल में विस्तृत लिंक ग्रंथियां पैदा हो जाती है और व्यक्ति ज्वर (बुखार), पसीना तथा कमजोरी से ग्रसित हो जाता है।
- विषाणु द्वारा प्रतिरक्षण कोशिकाओं को हानि पहुंचाए जाने के कारण व्यक्ति में अतिसार, थकान एवं वजन कम होने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।
- संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरक्षण पिंड व्यवस्था पूर्णता नष्ट हो जाती है। व्यक्ति अत्यधिक कमजोर हो जाता है। उसका शरीर अनेक संक्रमण से ग्रसित हो जाता है। व्यक्ति मानसिक विक्षोभ से भी ग्रसित हो जाता है और 2 से 3 वर्ष तक ही जिंदा रह पाता है।

एड्स के लक्षण (Symptoms of AIDS)
संक्रमण के पश्च्यात कुछ वर्षों में एड्स के लक्षण संक्रमित व्यक्ति में दिखने लगते है जैसे –
एड्स के लक्षण –
- कम काम करने पर भी ज्यादा थकान का अनुभव होना।
- अधिक दिनों तक बार – बार दस्त या अतिसार का होना।
- त्वचा पर घाव होना।
- लसिका ग्रंथियों का फूल जाना।
- बातचीत करने में कष्ट का अनुभव होना।
- दवाइयों का बीमारियों में प्रभाव नहीं पड़ना।
- धीरे-धीरे स्मरण शक्ति का कम होना तथा मानसिक क्षतिग्रस्त हो जाना।
- शरीर का वजन कम हो जाना।
- तपेदिक (TV) हो जाना।
- चक्कर आना, रात में पसीने – पसीने हो जाना।
एड्स का संचरण
एड्स का प्रसारण मुख्यता 4 तरीकों से होता है-
- एड्स असुरक्षित यौन संबंधों के कारण सर्वाधिक फैलता है। एड्स से संक्रमित कोई (महिला या पुरुष) किसी से असुरक्षित यौन सम्बन्ध स्थापित करता है तो स्वस्थ व्यक्ति में भी एड्स का संक्रमण हो जाएगा।
- एड्स पीड़ित व्यक्ति का रक्त दूसरे स्वस्थ मनुष्य को चढ़ाने से, रुधिर प्राप्तकर्ता को एड्स हो जाता है क्योंकि वे विषाणु सीधे उनके रक्त में स्थापित हो जाता है।
- एड्स से पीड़ित गर्भवती महिला के विषाणु भ्रूण में जाकर गर्भस्थ शिशु को भी संक्रमित कर देता है।
- HIV से संक्रमित इंजेक्शन / निडिल के प्रयोग करने से भी AIDS हो जाता है।
एड्स की जांच
एड्स की जांच एलिसा टेस्ट या वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के द्वारा की जाती है। ये टेस्ट 2 से 24 हफ्ते के संक्रमण हो जाने के पश्चात ही परिणाम देते हैं क्योंकि इस अवधि में कोई एंटीबॉडी का निर्माण नहीं होता है।
इस अवधि को विंडो अवधि करते हैं। इन परीक्षणों से विषाणु प्रतिरोधी एंटीबॉडी P-24 तथा T – हेल्पर की कोशिकाओं में कमी HIV संक्रमण की उपस्थिति को प्रमाणित करती है। एलिसा टेस्ट मात्र 2:30 घंटों में ही रिजल्ट दे देता है।
लेकिन यह 5 – 6% गलत पॉजिटिव रिजल्ट प्रदान करता है। एलिसा टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद वेस्टर्न ब्लास्ट टेस्ट के द्वारा संक्रमण की पुष्टि की जाती है। क्योंकि यह एंटीवायरल एंटीबॉडी की पहचान कर लेता है।
एड्स का रोकथाम (Prevention of AIDS)
- 78 % AIDS केवल असुरक्षित यौन संबंधों से फैलता है। अतः कई पार्टनर्स के साथ असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करने से बचना चाहिए।
- एड्स विषाणु रहित, रक्त का ही उपयोग रुधिर आधान (Blood transfusion) के लिए करना चाहिए।
- निडिल का प्रयोग एक ही बार करना चाहिए, इसके लिए डिस्पोजेबल सिरिंज (Disposable needle) का ही उपयोग करना चाहिए।
- दूसरे व्यक्तियों द्वारा उपयोग किया हुआ सेविंग रेजर, ब्लेड, टूथब्रश आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- आम जनता को एड्स के खतरे सावधानियों की जानकारी देकर जनचेतना जगाना भी एड्स के रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
एड्स का उपचार (Treatment of AIDS)
- अभी तक AIDS का सटीक एवं विशिष्ट उपचार संभव नहीं हो पाया है। इसे अप्रत्यक्ष रूप से उपचारित किया जाता है।
- सामान्यतः AZT अर्थात एजिडोथायमिडिन (Azidothymidine) नामक दवा का उपयोग किया जाता है, यह दवा एचआईवी विषाणु की वृद्धि को दबाती है।
- विश्व स्तर पर AIDS से छुटकारा हेतु 43 टिके परीक्षण के दौर में है लेकिन किसी एक को भी अभी तक सफल घोषित नहीं किया जा सका है।