Casteism in Hindi: जातिवाद (Casteism) एक ऐसी प्रथा है जिसमें अपनी जाति को श्रेष्ठ और अन्य जाति के लोगों को निम्न मानकर उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।
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दरअसल, जातिवाद (Casteism) एक तरह की मानसिक व्याधि है जो न केवल हमारे सोचने के तरीके को प्रभावित कर हमें रूढ़िवादी बनाती है बल्कि समाज की संप्रभुता और अखंडता के लिए भी एक बड़ा खतरा पैदा करती है।
जातिवाद अज्ञानता और अहंकार से प्रेरित प्राचीन प्रथा का एक बुरा परिणाम है। यह (Casteism) किसी समाज का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और अपमानजनक पहलू है जहां किसी व्यक्ति या समुदाय की “योग्यता और व्यक्तित्व” की उपेक्षा कर उसकी जाति को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
सभी मानव एक हैं लेकिन शिक्षा के प्रभाव के कारण उनके रहन-सहन या कार्यशैली में भिन्नता हो जाती है, इस भिन्नता को दूर करने के लिए हमें उचित प्रयास करना चाहिए, किन्तु जाति या वर्ण व्यवस्था इस भिन्नता को बढ़ावा देती है।
प्राचीनकाल से ही जातिव्यवस्था और जातिगत भेदभाव को प्रोत्साहन दिया जाता रहा ताकि एक विशेष वर्ग को आर्थिक और सामाजिक लाभ पहुँचाया जा सके।
जातिवाद की अवधारणा आज हमारे समाज में इतनी व्यापक हो गई है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को किसी न किसी जाति से जोड़कर देखता है।
काष्टिजम (Casteism) / जातिवाद पूर्ण रूप से स्व-लाभ पर केन्द्रित व्यवस्था है, इसमें में कैद प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को किसी न किसी जाति (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का मान लेता है और कल्पनाओं में खोकर अपनी जाति को श्रेष्ठ मानकर दूसरे लोगों को नीची नजरों से देखता है। यह मानसिकता सामाजिक एकता और अखंडता की सबसे बड़ी दुश्मन है।
इस लेख में हम जातिवाद क्या है (What is Casteism in Hindi), इसकी परिभाषा, अर्थ, कारण और समाज पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभावों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मेरा नाम नेहा मिश्रा है, यदि आप चाहें तो लेख के अंत में दी गई बटन का उपयोग कर मुझे इस कार्य के लिए सपोर्ट कर सकतें हैं।
जातिवाद का मतलब / अर्थ | Meaning of Casteism in Hindi
जातिवाद से आशय – जाति के आधार पर किसी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह या भेदभाव करना है। इसमें, जाति के आधार पर किसी समूह या समुदाय का किसी भी प्रकार का शोषण भी शामिल है।
Casteism meaning in Hindi: Casteism means prejudice or discrimination against a person or community on the grounds of caste.
जातिवाद क्या है | What is Casteism in Hindi
जातिवाद (Casteism) एक जाति को दूसरी जाति से श्रेष्ठ मानने की एक बुरी प्रथा है।
महान विचारक चंदन सिंह विराट के अनुशार – “जातिवाद एक गंभीर प्रकृति की मानसिक भ्रष्टता है जो किसी व्यक्ति की सोच, महसूस करने की क्षमता या दूसरे जाति / समुदाय के प्रति उसके व्यव्हार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।”
जाति व्यवस्था की उत्पत्ति | Origin of Caste system in Hindi
जाति व्यवस्था, मूल रूप से, प्राचीन भारत से लगभग 3000-4000 साल पूर्व पैदा हुई थी।
इस प्रणाली के अंतर्गत, हिंदुओं को उनके कार्य/व्यवसाय के आधार पर 4 क्रमबद्ध समूहों में विभाजित किया गया था –
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शूद्र
उनके “कार्य और व्यवसाय” को मुख्य रूप से “कर्म” शब्द के रूप में परिभाषित किया जाता था।
जातिवाद प्रथा की शुरुआत के बाद से ही इसका विभिन्न माध्यमों से प्रचार किया गया जिस कारण हमारे समाज में इसकी जड़े काफी मजबूत हो गई –
धर्म के माध्यम से जातिवाद का प्रसार | (Spread of Casteism in Hindi – Through Dharma)
मनु कानूनों (मनु की संस्था) द्वारा बल मिलने के तुरंत बाद जातिवाद (Casteism) व्यापक रूप से फैलने लगा। मनु एक हिंदू ब्राह्मण था जो खुद को ब्रह्मा का पहला पुत्र बताता था।
मनु ने एक विवादित पुस्तक – “मनुस्मृति” लिखी, जिसमें उसने हिंदुओं को चार श्रेणियों – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में वर्गीकृत कर उनकी तुलना ब्रह्मा के विभिन्न अंगों (हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक देवता) से की।

मनु ने अपनी मनुस्मृति को “मानव-धर्म-शास्त्र” के रूप में प्रचारित कर जातिवाद (Casteism) को धर्म का बल दे दिया ताकि अधिक से अधिक लोग इसका पालन करें। मनुस्मृति के नियमों का उलंघन करने वाले व्यक्ति को अधर्मी और अपराधी माना जाता था।
इस पुस्तक में मनु ने – “जाति व्यवस्था को ‘समाज की व्यवस्था और नियमितता’ का आधार बताकर जातिवाद (Casteism) को सही ठहराने का भरसक प्रयाश किया है।”
अपनी लोकप्रियता के बावजूद, मनुस्मृति को ‘न्याय वितरण प्रणाली’ में सामाजिक पूर्वाग्रह को बढ़ावा देने वाली सबसे विवादास्पद पुस्तकों में से एक माना जाता रहा है, जहां ब्राह्मणों और क्षत्रियों को किसी कदाचार के लिए सजा देते समय सर्वोपरि विशेषाधिकार दिए जाते थे, किन्तु, शूद्रों को कम से कम, केवल नाम मात्र के अधिकार दिए गए थे और किसी भी प्रकार के छोटे-मोटे उल्लंघनों या कम गंभीरता वाले अपराधों के लिए भी उन्हें (शूद्रों को) कठोरतम दंड और यातनायें दी जाती थी।
मनुस्मृति को दुनिया भर में आलोचनायें मिलती है क्योंकि यह देश के संवैधानिक सिद्धांतों के विरूद्ध जाकर महिलाओं के उत्पीड़न और निचली जातियों के दमन को सही ठहराती है।
इसके अतिरिक्त मनुस्मृति, भारतीय सविधान के अनुच्छेद 15, 16 और 17 के अंतर्गत प्रदत्त “समानता के अधिकार” के उल्लंघन को भी भड़काती है।
शिक्षा के माध्यम से जातिवाद का प्रसार | (Spread of Casteism in Hindi – Through Educational institutions)
मानव धर्म शास्त्र कही जाने वाली मनुस्मृति के अनुसार, ब्राह्मणों को पदानुक्रम के शीर्ष पर रखा गया था, ब्राह्मणों को सबसे उच्च जाति का माना जाता था और उनका प्रमुख पेशा लोगों को शैक्षणिक ज्ञान (पढ़ाना या शिक्षा) देना था।
जो ब्राह्मण मनुस्मृति को अपना आदर्श या मार्गदर्शक मानते थे वो अपने शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से समाज में जातिवादी अवधारणा को प्रसारित करते थे जिस कारण जातिवाद और बढ़ता चला गया।
राजनीति के माध्यम से जातिवाद का प्रसार | (Spread of Casteism in Hindi – Through Political institutions)
अधिकांश राजनेता राष्ट्रहित को वरीयता देने के नाम पर अपने जाति या समूह के प्रति अत्यधिक प्रेम और विश्वास दिखाते है, ऐसा करते समय वे अप्रत्यक्ष रूप से जातिवाद (Casteism) का प्रचार कर देते हैं।
जातिवाद (Casteism) कई राजनीतिक दलों द्वारा किए गए “जाति के राजनीतिकरण” का परिणाम है। इसकी विभिन्न अभिव्यक्तियों में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं –
- जाति के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन और विस्तार। उदाहरण के लिए – जस्टिस पार्टी, केरल कांग्रेस, डीएमके, रिपब्लिकन पार्टी, बसपा या बहुजन समाज पार्टी आदि।
- जाति के आधार पर प्रेशर ग्रुप/समूहों का उदय। उदाहरण के लिए – नादर एसोसिएशन, क्षत्रिय महासभा, हरिजन सेवक संघ आदि।
- चुनाव के दौरान, जाति के आधार पर पार्टी टिकटों का आवंटन और राज्यों में मंत्रिपरिषद या कैनिनेट का गठन।
- मध्य प्रदेश, यूपी और बिहार जैसे विभिन्न राज्यों में उच्च और निम्न जातियों के बीच जातीय संघर्ष।
- लोगों या पार्टियों के छोटे समूह जैसे – सपाक्स पार्टी इंडिया आदि द्वारा “आरक्षण नीतियों” के विरुद्ध हिंसक विवाद, असंतोष और / या आंदोलन इत्यादि की घटनाएँ।
जातिवाद के कारण | Causes of Casteism in Hindi
हम जानते हैं कि समाज में विभिन्न जाति के लोग एक साथ रहते हैं। यह एक तथ्य है कि ज्ञान और उचित नैतिक संवेदनशीलता के अभाव में किसी विशेष समूह या व्यक्ति में स्वयं या अपनी जाति के प्रति श्रेष्ठता की भावना विकसित होने की संभावना रहती है।
आत्मकेंद्रित लोग अक्सर अनुचित चीजों पर भरोसा करते हैं और दूसरे वर्ग या लोगों के समूह पर अपना बर्चस्व बनाने (हावी होने) की कोशिश करते हैं ताकि समाज में उनका पीढ़ी-दर-पीढ़ी रसूक बना रहे।
अपने मकसद की प्राप्ति के लिए तथाकथित श्रेष्ठ जाति के लोग कमजोर और अल्पसंख्यक जाति के लोगों का शोषण और उत्पीड़ित करते हैं। यह शोषण भेदभाव और सामाजिक पूर्वाग्रह को जन्म देता है जिसे अक्सर जातिवाद के (Casteism) नाम से जाना जाता है।

जातिवाद के प्रमुख कारण (Main causes of Casteism in Hindi) हैं –
- अपनी जाति के प्रति श्रेष्ठता की भावना
- एक जाति के भीतर ही विवाह करने की प्रथा
- शहरीकरण का प्रभाव
- परिवहन और संचार के साधनों में वृद्धि
- निरक्षरता
- अज्ञानता
- रूढ़वादिता
- धार्मिक हठधर्मिता में विश्वास
- सामाजिक दूरी
आम तौर पर अलग-अलग जातियों के अपना-अपना रीति-रिवाज, पहनावा, खान-पान और भाषा होती है और यही विविधता उनके बीच के अंतर को उजागर करती है।
समस्या तब विस्फोटक होने लगती है जब प्रत्येक जाति के लोग अपनी परंपराओं को सर्वोपरि मानकर अपनी संस्कृति को जरूरत से ज्यादा महत्व देने लगते हैं, वास्तव में, यह जातिवाद (Casteism) का दूसरा मुख्य कारण है।
आधुनिक युग में भी जातिवाद (Casteism) जैसी घटनाएं समाज में बहुत बार देखने को मिलती हैं।
कम विकसित क्षेत्र जहाँ के लोग पर्याप्त शिक्षित नहीं हैं जैसे – गाँव और रिमोट एरिया में आज भी ब्राह्मण जाति को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है, उसके बाद क्षत्रिय और फिर वैश्य।
शूद्र जाति के रूप में चिन्हित लोगों को आज भी छूत माना जाता है, उन्हें उचित सम्मान नही दिया जाता चाहे वो भले ही कितने पढ़े लिखे, प्रतिभाशाली या उच्च पदों पर कार्य कर रहें हों।
पूर्व में भी यह भी देखा गया कि – ग्रामीण समुदायों को एक क्रम में व्यवस्थित किया गया था जो मूल रूप से जाति पर आधारित था। उच्च या श्रेष्ठ जाति हमेशा निम्न वर्ग से दूर एक अलग स्थान पर रहती थी।
निचली जाति के लोगो को कई वर्षों तक शिक्षा से वंचित रखा गया, उनका शोषण किया जाता रहा तथा उन पर अत्याचार भी किए गए।
पानी के कुओं को उनके साथ साझा नहीं किया जाता था, मंदिर में उनके प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध था।
निम्न वर्ग के व्यक्ति को उच्च जाति के व्यक्ति की किसी भी वस्तु को छूने की अनुमति नहीं थी। सार्वजनिक स्थानों का उपयोग करने या उच्च जाति के व्यक्ति के सामने कुर्सी पर बैठने का अधिकार भी नहीं था।
इसके साथ ही, ब्राह्मण शूद्रों से खाना-पीना स्वीकार नहीं करते थे। हर कोई अपनी जाति के भीतर ही विवाह कर सकता है।
इस तरह, निचली जाति के जीवन को वास्तविक नियंत्रण की एक रेखा के भीतर कैद कर दिया गया जिसे उच्च जाति द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
निचली जाति को उच्च जाति की तरह कोई समान अधिकार नहीं था।
भीमराव अंबेडकर भी इस जातिवादी प्रथा के शिकार हुए थे। उन्होंने कड़ी मेहनत की और इस व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी, वे इस काबिल बने कि, थोड़े समय बाद, उन्होंने भारत का संविधान रचकर सभी दलितों के लिए “समान अधिकारों” की बात की और समाज में उन्हें उचित स्थान दिलाने के लिए संवैधानिक अधिकार दिलवाया।
उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए, डॉ भीमराव अंबेडकर को “भारतीय संविधान का जनक” भी कहा जाता है।
जातिवाद (Casteism) एक भयानक सामाजिक बुराई है जिसे समाज में कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। यह समाज को बांटने और राष्ट्र की अखंडता को तोड़ने का काम करता है, यह आधुनिक सभ्य समाज पर बहुत बड़ा धब्बा है।
भारत में जातिवाद | Casteism in India
एक सभ्य समाज के विपरीत, जहां योग्यता और व्यक्ति के व्यक्तित्व को महत्व दिया जाता है, भारतीय समाज जाति या जातिगत श्रेष्ठता को अधिक वरीयता देता है। “जातिवाद” भारत के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है।
अक्सर यह देखा जाता है कि – उच्च जाति के लोग जो कम योग्यता वाले होते हैं वे अपनी जाति का सहारा लेकर खुद को ज्यादा योग्य दिखाने का प्रयत्न करते हैं।
विवाह हेतु वर-वधु के चयन में आज भी, जाति एक प्रमुख कारक है। लोग शादी करने से पूर्व लड़के या लड़की की जात-पात को देखते हैं।
अगर हम सुदूर इलाकों में जाएँ तो यह देखतें हैं की जातिवाद (Casteism) की जड़ें हमारे समाज में बहुत गहरी हैं, निम्न वर्ग के लोगों के साथ आज भी पक्षपात और अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता है।
भारत में हर चुनाव में जातिवाद (Casteism) को प्रमुख स्थान दिया जाता है, प्रत्येक दल जाति के आधार पर अपने पक्ष में वोट लेने का प्रयास करता है।
भारतीय इतिहास में जाति को प्रारंभ से ही एक महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है, लोगों को शुरू से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के आधार पर विभाजित किया गया है। वर्तमान में भी जाति के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है।
हम भारत के लगभग हर राज्य में सामाजिक असमानता देख सकते हैं, अभी भी मतदाताओं के जाति-आधारित बहुमत को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों को चुनाव टिकट आवंटित किए जाते हैं।
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश चुनावों में, यादवों की बहुमत के कारण उनकी जाति का मुद्दा बनाया जाता है। इसी तरह गुजरात में पटेलों को निशाना बनाया जाता है और बहु-जाति के लोगों को ध्यान में रखते हुए प्रतिनिधियों का चयन किया जाता है।
उपरोक्त के बावजूद, भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है, भारत में विभिन्न जाति और धर्म के लोग एक साथ रहते हैं, प्रत्येक जाति के रीति-रिवाजों, पहनावे और खान-पान में कई भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।
बिहार, ओडिशा, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों की तुलना में भारत के विकसित राज्यों में जातिवाद की प्रथा (Practice of Casteism) कम देखने को मिलती है।
जैसे-जैसे लोग शिक्षित होते जा रहें हैं वैसे-वैसे हम भारतीय समाज में सकारात्मक बदलाव देख रहे हैं। एक विद्वान एम एन श्रीनिवास ने जाति व्यवस्था में इस गतिशीलता को “संस्कृतीकरण” (Sanskritization) के नाम से परिभाषित किया है।
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया में उचित स्थान प्राप्त करने के लिए, निचली जाति के लोग अपने क्षेत्र के उच्च जाति के लोगों की आदतों और व्यवहार पैटर्न की नकल करते हैं।
इसमें निम्न जाति का नाम, उपनाम या जीवन शैली को उच्च जाति के अनुशार बदलना, शाकाहार और संस्कृति को अपनाना, अधिक रूढ़िवादी धार्मिक प्रथाओं का पालन करना, मंदिर बनाना और अपनी महिलाओं के साथ अधिक रूढ़िवादी तरीके से व्यवहार करना आदि शामिल हैं।
भारत में जातिवाद की कानूनी-वैधता | Legality of Casteism in India
जातिवाद (Casteism) एक ऐसी प्रथा है जहाँ लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है, सभी मनुष्य एक जैसे और एक समान हैं लेकिन जाति के आधार पर, कुछ लोगों को जन्म से ही अछूत या अपवित्र माना जाता है।
जातिवाद की प्रथा भारतीय संविधान के आदर्शों के खिलाफ है। यह सविधान के अनुच्छेद 15, 16 और 17 के तहत लोगों को प्रदत्त “समानता के अधिकारों” का बड़े पैमाने पर हनन करती है।
संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत, अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है और भारत में किसी भी रूप में इसका प्रचार और अभ्यास पूर्णतः प्रतिबंधित है।
अब अस्पृश्यता [अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1954 के तहत] एक गंभीर अपराध है, कोई भी व्यक्ति यदि जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव/छुआछूत करता है तो उसे भारतीय कानून के अनुसार 2 साल से अधिक समय के लिए कठोर कारावास / सजा देने का प्रावधान किया गया है।
संदेहों को दूर करने के लिए, यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1954 [Untouchability (Offences) Act, 1954] को साल 1976 में संशोधित कर इसका नाम बदलकर “नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम” (Protection of the Civil Rights Act) कर दिया गया है।
यह एक बुरी प्रथा है जिसके पीछे कोई कानूनी शक्ति नहीं है इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत में जातिवाद (Casteism) अब पूरी तरह से अवैध और असंवैधानिक है।
जातिवाद (Casteism) मूल रूप से सांप्रदायिकता से जुड़ा हुआ है। यह देश की सीमा के भीतर और बाहर मानवीय मूल्यों और सामाजिक कल्याण की भावनाओं की अनदेखी करके राष्ट्र-एकीकरण की प्रक्रिया में बाधा डालता है।
यह न केवल चुनावों में हानिकारक भूमिका निभाता है बल्कि राष्ट्र की लोकतांत्रिक भावनाओं को भी छति पहुंचाता है।
जातिवाद से निपटने के लिए कानून, अनुच्छेद और प्रावधान
देश में जातिवाद की प्रथा को दूर करने के लिए भारत की पहल नीचे दी गई है।
- संविधान के भाग III में “मौलिक अधिकार” के तहत भारत के नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, 16 और 17 जातिवाद (Casteism) से संबंधित हैं।
- “अस्पृश्यता उन्मूलन” भारत में जातिवाद (Casteism) और अस्पृश्यता (Untouchability) को दूर करने के प्रमुख कदमों में से एक है।
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के माध्यम से देश में अस्पृश्यता की प्रथा को कानूनी रूप से समाप्त कर दिया है।
- देश में भेदभाव की प्रथा को रोकने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 भी लागू किया गया है।
- सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने और शैक्षणिक संस्थानों, राजनीति और सार्वजनिक कार्यालयों में पिछड़े वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व बनाए रखने के लिए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण के प्रावधान भी दिए गए।
- सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने और अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों के सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किया गया।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अम्बेडकर योजना चालाई गई और अंतरजातीय विवाह (रोटी-बेटी संबंध) के जरिये दो अलग-अलग जाति के परिवारों को एक-दूसरे के करीब लाने के लिए कई राज्यों द्वारा प्रयास किया जा रहा है।
जातिवाद के दुष्परिणाम | ill effects of Casteism in Hindi
- जातिवाद, अस्पृश्यता (छुआछूत) और भेदभाव की प्रथा को बढ़ावा देता है और “सामाजिक समानता और न्याय” के मार्ग में बाधा डालता है।
- जातिवाद (Casteism) किसी भी समाज में सामाजिक व्यवस्था, स्थिरता, शांति और सौहार्द के लिए एक बड़ा खतरा है।
- समाज में जातिवाद (Casteism) की व्यापकता से पता चलता है कि लोग रूढ़िवादी और संकुचित विचारों के हैं।
- यह राष्ट्रीय एकता, संप्रभुता और सामाजिक एकता में एक विकट बाधा के रूप में कार्य करता है।
- जातिवाद (Casteism) राजनेताओं के हाथ में एक हथियार बन गया है। उनमें से कई अपने गुणों और क्षमताओं के बजाय, सांप्रदायिक और जाति के आधार पर चुनाव के दौरान वोट हासिल करने की कोशिश करते हैं।
- जातिवाद (Casteism) विद्रोह और क्रांति का माहौल बनाता है, यह अहिंसा का सहारा लेकर अनुशासनहीनता को जन्म देता है।
- यह किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, यह भाईचारे की भावना के लिए खतरा है।
- जातिवाद (Casteism) समाज को अलग-अलग हिस्सों में बांटता है और कभी-कभी इन हिस्सों के बीच गंभीर संघर्ष और तनाव पैदा करता है।
- यह देश के विकास का अवरोधक है, जातिवाद (Casteism) द्वारा फैलाए गए विद्रोह और हिंसा के कारण जान-माल की हानि भी होती है, जो देश और मानव जीवन के व्यक्तिगत विकास में बाधक होती है।
- यह परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार का कारण हो सकता है। एक ही जाति के सदस्य अपनी ही जाति के व्यक्तियों को सभी सुविधाएं और लाभ देने का प्रयास करते हैं, और ऐसा करते समय वे सबसे भ्रष्ट और बेईमान गतिविधियों में भी शामिल होने से नहीं हिचकिचाते हैं।
उपसंहार | Conclusion
जातिवाद की प्रथा से छुटकारा पाने के लिए सरकार और निजी हितधारकों द्वारा कई सामूहिक पहल की गई, इस संदर्भ में समाज में एक क्रमिक सकारात्मक प्रभाव भी देखा जा सकता है, हालांकि, इसे खत्म करने के लिए अभी भी कुछ असाधारण प्रयास और कठोर कदम उठाये जाने की आवश्यकता है, जैसे –
- बच्चों को बचपन से ही मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करने से जातिवाद (Casteism) की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
- रोटी-बेटी संबंध/अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करके जातिवाद (Casteism) से उत्पन्न अलगाव की भावनाओं को कमजोर किया जा सकता है क्योंकि ये विवाह सामाजिक एकीकरण के उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं और विभिन्न जातियों के दो परिवारों को एक-दूसरे के करीब लाते हैं।
- जातिवाद (Casteism) और छुआछूत (Untouchability) रोकने हेतु बनाये गए कानूनों का सख्ती से पालन और कार्यान्वन ताकि कोई भी किसी के साथ असमानता का व्यवहार न कर सके।
- परिवार, स्कूल और मास मीडिया जैसी विभिन्न सामाजिक एजेंसियों को बच्चों के बीच एक उचित, व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने की नैतिक जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जो जातिवाद (Casteism)की भावनाओं को ख़त्म करे, जैसे कि पारंपरिक रूप से जातिवाद के संरक्षण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना इत्यादि।
- ग्रामीण क्षेत्रों में वस्तु-उन्मुख साहित्यिक कार्यक्रमों को संचालित किया जाना चाहिए क्योंकि जाति की भावनाएँ, जो आगे चलकर जातिवाद और अस्पृश्यता को कायम रखती हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रचलित हैं। जातिवाद (Casteism) की इन भावनाओं को ग्रामीण आबादी के बीच सामाजिक शिक्षा के प्रावधानों से कम किया जा सकता है।
- समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समानता का प्रावधान ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा की प्रछन्न संभावनाओं को कम करता है। इस प्रकार आर्थिक और सांस्कृतिक समानता जातिवाद (Casteism) को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- वी.के.आर.वी. राव के अनुसार जातिवाद (Casteism) उन्मूलन और इसके मूल आधारों को समाप्त करने के लिए, कुछ वैकल्पिक समूहों का निर्माण आवश्यक है जिसके माध्यम से लोगों की सांप्रदायिक प्रवृत्ति को प्रकट और संगठित किया जा सके। जैसे-जैसे ये बढ़ेंगे, जातिवाद (Casteism) कम होता जायेगा क्योंकि लोगों को जाति के बाहर अपनी प्रवृत्ति और उद्देश्यों को व्यक्त करने का मौका मिलेगा।
उपरोक्त के अलावा प्रत्येक देश को जातिवाद (Casteism) के प्रभावों से बचना चाहिए, तभी वे अपनी संप्रभुता की रक्षा कर सकते हैं और आर्थिक और सामाजिक रूप से एक विकसित / मजबूत राष्ट्र बन सकते हैं।
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