वर्तमान समय ‘सूचना क्रांति’ का युग है। हमारे पास अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए मोबाइल, फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया (फेसबुक व्हाट्सएप वीडियो कॉलिंग) ईमेल आदि की सुविधाएं है। किंतु जब ये सारी सुविधाएं हमारे पास नहीं थी, तब इनके स्थान पर पत्र लेखन किया जाता था।
इस प्रकार हम दूर रहने वाले अपने स्वजन, संबंधी और मित्रों की कुशलता का समाचार जानने और अपनी कुशलता का समाचार उन तक पहुंचाने के लिए पत्र लिखते थे, जिनके माध्यम से हम एक दूसरे की कुशलता का समाचार पत्र प्राप्त कर पाते थे।
हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने पत्रों के माध्यम से अपनी सुपुत्री इंदिरा गांधी को अपने देश ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक आदि बातों की जानकारियाॅं दी थीं। अतएव, पत्र की भाषा ऐसी होनी चाहिए मानो हम आस-पास बैठे एक-दूसरे से बातें कर रहे हैं।
पत्र लेखन (Letter writing) की परंपरा अत्यंत प्राचीन है बाद में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पत्र पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने डाक विभाग का गठन किया था, जो मुख्य रूप से पत्र को निश्चित स्थान तक पहुंचाने का काम करता है। इसके बदले में पत्र प्रेषित करने वाले को डाक टिकट के रूप में कुछ शुल्क देना होता है।
पत्र लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें
- पत्र लेखन के समय यह बात अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि पत्र की भाषा पाने वाले के मानसिक स्तर (मन की कल्पना से उत्पन्न भाव) के अनुरूप हो।
- पत्र में इधर-उधर की बातें न लिखकर अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए।
- पत्र में सरल तथा छोटे शब्दो का प्रयोग करना चाहिए।
- पत्र की भाषा सरल, सहज, सजीव तथा रोचक होनी चाहिए।
- पत्र – लेखन में भाषा की श्रेष्ठता अवश्य बनाए रखनी चाहिए।
- पत्र के विभिन्न अंगों में सामंजस्य बनाए रखने का प्रयोग करना चाहिए।
- व्यक्तिगत पत्रों में आत्मीयता अवश्य होनी चाहिए।
पत्र की विशेषताएं
पत्र की निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए –
- सरलता
- स्पष्टता
- संक्षिप्तता
- आकर्षकता तथा मौलिकता
- उद्देश्यपूर्णता
- चिन्हांकित
- शिष्टता
पत्र लेखक के महत्वपूर्ण अंग
पत्र लेखक के महत्वपूर्ण अंग उदाहरण सहित नीचे दिए गए हैं –
- पता: सबसे ऊपर बाएं और प्रेषत (पत्र भेजने वाले) का नाम
- दिनांक: जिस दिन पत्र लिखा जा रहा है उस दिन की तारीख।
- संबोधन: जिस व्यक्ति को पत्र लिखा जा रहा है उसके साथ संबंध के अनुसार संबोधन का प्रयोग किया जाए। जैसे बड़ों के लिए पूज्य, पूजनीय, आदरणीय आदि।
- अभिवादन: जिस व्यक्ति को पत्र लिखा जा रहा है उसके साथ संबंध के अनुसार अभिवादन जैसे – सादर प्रणाम, चरण स्पर्श, नमस्ते प्रणाम, मधुर व प्यार आदि।
- मुख्य विषय: इसके अंतर्गत 3 अनुच्छेद आते हैं जैसे –
- पहला अनुच्छेद: पत्र में इस प्रकार से शुरुआत होनी चाहिए मैं/हम कुशल है आशा करता हूं कि आप भी वहाॅं सकुशल होगे।
- दूसरा अनुच्छेद: जिस उद्देश्य से पत्र लिखा जा रहा है उस बात का उल्लेख हो।
- तीसरा अनुच्छेद: जैसे मेरी तरफ से बड़ो को प्रणाम/छोटे को आशीर्वाद व प्यार।
- समाप्ति: अंत में प्रेषक का संबंध जैसे – आपका पुत्र, आपकी पुत्री, आपकी भतीजी इत्यादि।
- हस्ताक्षर व नाम धन्यवाद के लिए क्षमा जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। जैसे – भवदीय, प्रार्थी आदि।
- प्रेषक का पता: शहर/गांव/मोहल्ला का नाम, पता, पिन नंबर आदि।
- दिनांक: पत्र लेखन की तारीख लिखना है।
पत्र के प्रकार
पत्रों को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया गया है-
- अनौपचारिक पत्र (lnformal latter)
- औपचारिक पत्र (Formal letter)
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1. अनौपचारिक पत्र
अनौपचारिक पत्र (lnformal letter) उन लोगों को लिखा जाता है जिससे हमारा व्यक्तिगत संबंध रहता है।
अनौपचारिक पत्र अपने परिवार के लोगों जैसे माता-पिता, भाई-बहन, सगे संबंधियों व मित्रों को उनका हालचाल पूछने, निमंत्रण देने, और सूचना आदि देने के लिए लिखे जाते हैं।
इन पत्रों में सरल भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। अनौपचारिक पत्रों में शब्दों की संख्या असीमित हो सकती है, क्योंकि इन पत्रों में इधर-उधर की बातों का भी समावेश होता है।
2. औपचारिक पत्र
औपचारिक पत्र (Formal letter) उन्हें लिखा जाता है, जिससे हमारा व्यावसायिक सम्बन्ध होता है।
औपचारिक पत्रों में कई तरह के पत्र आते हैं, जैसे – विद्यालय के लिए प्रधानाचार्य, प्रशासनिक पदाधिकारियों, व्यापारियों, संपादकों, समाचार पत्र के संपादकों, पुस्तक विक्रेता आदि।
औपचारिक पत्रों के प्रकार
औपचारिक पत्र दो प्रकार के होते हैं –
- सामान्य संदर्भ में लिखे जाने वाले पत्र
- विशिष्ट संदर्भ में लिखे जाने वाले पत्र
a. सामान्य संदर्भ में लिखे जाने वाले पत्र
इसमें विषय वस्तु, प्रशासन, कार्यालय और व्यवसायिक से जुड़ी हुई चीजें होती हैं। इसकी भाषा शैली एक निश्चित सांचे में ढली होती है और इसका प्रारूप निश्चित होता है जैसे – आवेदन पत्र, आदेश पत्र, माॅंग पत्र आदि।
b. विशिष्ट संदर्भ में लिखे जाने वाले पत्र
इसमें विषय वस्तु सामान्य जीवन की विभिन्न परिस्थितिओ से जुड़ी होती है। इनकी भाषा शैली सामान्य व औपचारिक होती है और इसका प्रारूप आवश्यकतानुसार परिवर्तनशील होता है। जैसे – शिकायती पत्र, बधाई पत्र निमंत्रण पत्र आदि।
वर्गों के आधार पर औपचारिक पत्रों का प्रकार
औपचारिक पत्रों को सरल तरीके से पढ़ने, लिखने और समझने के लिए 4 वर्गों में बांटा गया है जो नीचे दिए गए निम्नलिखित –
- कार्यालयी पत्र (Official letter)
- संपादकीय पत्र (Editorial letter)
- व्यवसायिक पत्र (Business letter)
- प्रार्थना पत्र/आवेदन पत्र (Application letter)
कार्यालयी पत्र (Official letter): कार्यालयीन पत्र लेखन का अर्थ सरकारी पत्र से है जो किसी कार्यालय के अधिकारियों द्वारा अन्य कार्यालय के अधिकारियों के लिए लिखा जाता है जैसे – अधिसूचना, कार्यालय ज्ञापन, परि-पत्र, कार्यालय आदेश आदि।
संपादकीय पत्र (Editorial letter): संपादकीय पत्र जो किसी मुद्दे पर समाचार पत्र या पत्रिका की राय बताता है। यह पत्र या पत्रिका के संपादक या संपादक मंडल द्वारा लिखा जाता है। जैसे – मंहगाई, अर्थव्यवस्था, सामाजिक मुद्दे, बेरोजगारी इत्यादि विषयों पर लिखे जाने वाले पत्र।
व्यवसायिक पत्र (Business letter): ऐसे पत्र जो विभिन्न व्यवसाय कार्यों के संबंध में लिखे जाते हैं। जैसे- पुस्तक मगवाना, गलत सामान की शिकायत करना आदि।
प्रार्थना पत्र/आवेदन पत्र (Application letter): जिन आवेदन पत्रों में भवदीय, निवेदन या प्रार्थना की जाती है, उसे प्रार्थना पत्र कहते हैं। प्रार्थना पत्र किसी विशेष कार्य के लिए प्रधानाध्यापक या किसी कार्यालय के अधिकारी के लिए लिखा जाता है। जैसे अवकाश, फीस माफ आदि।
औपचारिक पत्र के अंग
औपचारिक पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं –
- पत्र संख्या/पत्रांक
- शीर्षक या कार्यालय
- प्रेषक
- सेवा में
- प्रेषिती (पत्र प्राप्त करने वाला) का पद और पता
- स्थान और दिनांक
- विषय
- संबोधन
- निर्देश
- स्वनिर्देश / अभिनिवेदन
- हस्ताक्षर
- संलग्न सूची
- पृष्ठांकन आद
औपचारिक पत्र के संबंध में ध्यान देने योग्य बातें
- औपचारिक पत्र में सबसे उपर पत्र प्रेषक का पता तथा उसके पश्चात पत्र प्राप्तक (पत्र प्राप्त करने वाले) का नाम और पता लिखा जाना चाहिए।
- इसके विषय को संक्षिप्त रूप से एक वाक्य में लिखा जाना चाहिए।
- लेख जिसके लिए लिखा जा रहा है उसके लिए संबोधन शब्द माननीय, महोदय, आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
- विषय वस्तु को 2 अनुच्छेद में लिखना चाहिए।
- पहले अनुच्छेद में अपनी समस्या के बारे में लिखना चाहिए।
- दूसरे अनुच्छेद में आप उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं उसे लिखना चाहिए तथा धन्यवाद के साथ उसे प्राप्त करना चाहिए।
- पत्र के अंत में हस्ताक्षर करते हुए अपना नाम लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्र में आरंभ और समापन करने वाले शब्द (Beginning and closing words in formal letter)
पत्र का प्रकार | संबंध | आरंभ | समापन |
---|---|---|---|
व्यावसायिक | पुस्तक विक्रेता, बैंक मैनेजर, व्यापारी आदि | मान्यवर, माननीय, श्रीमान, महोदय | भवदीय, निवेदक |
आवेदन पत्र | प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक और अन्य अधिकारी | श्रीमान् जी, महोदय,आदरणीय महोदय, माननीय महोदय | विनीत, प्रार्थी भवदीय, आपका आज्ञाकारी |
कार्यालय | संपादक, नगर निगम अधिकारी, मंत्री, पोस्टमास्टर आदि | आदरणीय संपादक महोदय, मान्यवर, महोदय | भवदीय, प्रार्थी आपका कृपाकांक्षी, निवेदन, विनती |
औपचारिक पत्र लेखन के उदाहरण
1. स्थानांतरण प्रमाण-पत्र एवं चरित्र प्रमाण-पत्र हेतु प्रार्थना-पत्र ।
सेवा में,
प्राचार्य महोदय,
विद्यालय का नाम
विषय : स्थानांतरण एवं चरित्र प्रमाण-पत्र हेतु।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे पिता जी का ट्रांसफर (स्थानांतरण) दिल्ली से मुम्बई हो गया है। मेरे भैया भी आई. आई. टी. की प्रवेश परीक्षा में सफल हो गए हैं और संयोगवश उनका नामांकन भी आई. आई. टी. कॉलेज पुणे में होना है। हम सपरिवार मुम्बई जा रहे हैं। इस कारण से मुझे पढ़ाई जारी रखने के लिए स्थानांतरण एवं चरित्र-प्रमाण-पत्रों की आवश्यकता है।
अतः श्रीमान् से नम्र निवेदन है कि उक्त प्रमाण-पत्र दिए जाने की कृपा करें।
दिल्ली, 21-04-2022
आपका आज्ञाकारी छात्र
नाम ……………
कक्षा …………..
2. आपके स्कूल में खेल-कूद की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। इसकी सुन्दर व्यवस्था के लिए आग्रह करते हुए अपने प्राचार्य के पास प्रार्थना पत्र लिखें।
सेवा में, दिनांक…
श्रीमान् प्राचार्य महोदय,
विद्यालय का नाम……..
विषय : खेल-खूद की व्यवस्था में अपेक्षित सुधार हेतु।
मान्यवर,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में न तो खेल-कूद की पर्याप्त सामग्री है, न ही अच्छे गाइड। छात्र-छात्राओं की संख्या के अनुपात में सामग्री बहुत ही कम है। सीनियर छात्र-छात्रा ही गाइड का भी काम करते हैं जो काफी नहीं है।
चूँकि उन्हें भी खेल के नियमों की अद्यतन जानकारी नहीं है इसलिए पिछले महीने हुए क्रिकेट टूर्नामेंट में और वॉलीबॉल प्रतियोगिता में हमारी टीमों की करारी हार हो गई थी।
अतः श्रीमान् से सादर निवेदन है कि खेल-कूद की सामग्रियों में वृद्धि एवं एक खेल-शिक्षक या अच्छे प्रशिक्षक की व्यवस्था कर विद्यालयी टीम को सशक्त करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाएँ। इस कार्य के लिए हम सारे छात्र-छात्राएँ आपके आभारी रहेंगे।
धन्यवाद!
छात्र नाम …………
कक्षा ……………
3. प्रधानाध्यापक को विलम्ब शुल्क माफ करने के संबंध में प्रार्थना पत्र।
सेवा में, दिनांक…
प्रधानाध्यापक महोदय,
विद्यालय का नाम……..
विषय : विलम्ब शुल्क माफ कराने हेतु।
महाशय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा की छात्रा हूँ। पिछले सप्ताह मेरे दादाजी बहुत बीमार थे जिसके कारण पूरा परिवार आर्थिक संकट में रहा। इस आर्थिक संकट की वजह से मैं विद्यालय का मासिक शुल्क समय पर अदा नही कर पायी।
अतः आपसे सादर निवेदन है कि मेरा विलम्ब-शुल्क दंड माफ कर दिया जाय और बिना दंड के शिक्षण शुल्क जमा करने की अनुमति दी जाय।
आशा है, आप मेरे प्रार्थना पत्र पर सहानुभूतिपूर्वक विचारकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।
धन्यवाद !
आपकी आज्ञाकारिणी
(छात्रा का नाम …….)
कक्षा ……………
4. चेचक के टीके के लिए हेल्थ ऑफिस को पत्र।
सेवा में, दानापुर, 17 जुलाई, 2009
श्रीमान् हेल्थ ऑफिसर,
(स्थान का नाम)।
विषय : चेचक के टीके की व्यवस्था हेतु।
महोदय,
शायद, आपको ज्ञात हो कि दानापुर अनुमंडल के पश्चिमी भाग में इन दिनों चेचक का प्रकोप जोरों पर है। बिहटा में लगभग 40 बच्चों की चेचक से मृत्यु हो चुकी और तकरीबन 10 लोग गंभीर रूप से बीमार हैं।
कृपया, इस क्षेत्र में शीघ्रातिशीघ्र चेचक का टीका लगवाने का प्रबंध करें।
भवदीय
नाम…….
वार्ड सदस्य,
स्थान का नाम….
5. मनिऑर्डर गुम होने के संबंध में पोस्टमास्टर को पत्र।
सेवा में, दिनांक : ……………..
पोस्टमास्टर महोदय,
पता …………
विषय : मनिऑर्डर गुम होने के संबंध में पत्र।
महाशय,
पिछले माह की 14 तारीख को मैंने दादाजी को प्रधान डाकघर औरगाबाद से 500 रु. मनिऑर्डर भेजा था। एक माह से ज्यादा हो रहे हैं किन्तु अभी तक उन्हें मनिऑर्डर नहीं मिल पाया है।
मुझे लगता है कि डाक-विभाग की किसी चूक के कारण ऐसा हुआ है। ऐसी स्थिति में लोगों का विश्वास डाक-सेवा से उठ जाता है।
उन्हें रुपयों की सख्त जरूरत है अतः इसकी पड़ताल कर करने का कष्ट करें। उपर्युक्त मनिऑर्डर से संबंधित जानकारी इस प्रकार है –
मनिऑर्डर पानेवाले का नाम व पता …………
दिनांक : ……………..
राशि – ……….
आशा है, आप मानिऑर्डर की समस्त राशि उपर्युक्त पते पर अविलम्ब भेजकर मुझे कृतार्थ करेंगे।
धन्यवाद !
नाम व पता …………
6. परीक्षा में शानदार सफलता के लिए मित्र को बधाई पत्र
प्रिय मित्र, कटरा, जम्मू-कश्मीर 18 मार्च, 2010
सप्रेम वन्दे।
आशा है, तुम सपरिवार सहित स्वस्थ एवं सानंद होगे। तुम इतने व्यस्त रहते हो कि अपनी खुशखबरी भी नहीं सुनाते। यह संयोग ही था कि समाचार पत्र में तुम्हारी तस्वीर और इंटरव्यू देख यह पता चला कि यू.पी.एस.सी. की मुख्य परीक्षा में न सिर्फ उत्तीर्ण हुए हो बल्कि पूरे भारतवर्ष के परीक्षाथियों में तुम्हारा द्वितीय स्थान है।
मैं तो अखबार-सहित मम्मी-पापा के पास जा कर झूम-झूमकर तुम्हारा इंटरव्यू सुनाने लगा। मित्र, तुम्हारी इस सफलता के लिए तुम्हें बहुत-बहुत बधाई हो। मेरी शुभकामना है कि तुम इसी तरह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते रहो।
मैंने जब यह सूचना अपने मम्मी-पापा को दी तब उनकी खुशी का भी ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने भी ढेर सारी शुभकामनाएँ दी हैं।
मम्मी को एक बात का संदेह है कि कहीं तुम हमसब को भूल न जाओ। मैंने मम्मी को विश्वास दिलाया है कि अपना अभिनव ऐसा कतई नहीं करेगा। देखना दोस्त, मम्मी को शिकायत का मौका नहीं देना। बांकी मिलने पर। चाचाजी और चाचीजी को मेरा सादर नमन कहना और अंजलि को शुभ प्यार।
एक बार फिर तुम्हें कोटिशः बधाई। शेष समाचार पूर्ववत् है।
तुम्हारा अभिन्न मित्र वीरेन्द्र सिंह
अभिनव चौरसिया जयप्रकाश नगर, रोड नं.-14 पश्चिमी पटना-14
7. माताजी के देहान्त पर मित्र को शोक-पत्र
प्रिय माहेश्वरी,
अपराजिता अपार्टमेंट कमरा नं.-201 रोड नं.-32, बड़ा बाजार, कोलकाता 26 जून, 2009
नमस्ते।
आज ही तुम्हारा शोक-भरा पत्र प्राप्त हुआ। माताजी के देहान्त की बात पढ़कर मैं सन्न रह गया। उनकी अस्वस्थता से तो मैं अवगत था किन्तु इतनी जल्दी वो हम लोगों को छोड़ जाएँगी, ऐसा कभी सोचा नहीं था। इस खबर को सुनकर तो तुम्हारी चाची भी बहुत रोयी।
मेरे प्रिय, भला होनी को कौन टाल सकता है ? इस दुःख घड़ी में तुम धर्य न खोना क्योंकि ऐसे समय ही इन्सान की असली परीक्षा होती है।
नियति के इस दंड को तुम्हें स्वीकारना होगा। यह तो प्रकृति का नियम ही है। देखो, गोस्वमी जी ने रामचरितमानस में क्या लिखा है –
‘आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक, फकीर।
एक सिंहासन चढ़ी चले, एक बँधै जंजीर।”
मेरे दोस्त, आदि और अन्त सब कुछ भाग्य के हाथ हैं। तुम इस सच्चाई को समझो और कलेजे पर पत्थर रख जीवन में आने वाले समय के बारे में सोंचो।
ईश्वर करे, माताजी की दिवंगत आत्मा को चिरशांति मिले। विपत्ति की इस घड़ी में मैं स्वयं दो दिन में तुम्हारे पास आ रहा हूँ। शेष मिलने पर।
तुम्हारा मित्र
वासुदेव सोलंकी
डाक टिकट
श्री माहेश्वरी नौटियाल C/o, श्री दुर्गेश्वरी नौटियाल शान्ति कुंज, फ्लैट नं.-155 टैगोर रोड हावड़ा -26 (प. बंगाल)
8. बहन के विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिए मित्र/दोस्त को पत्र
शान्ति कुंज रोड, हरिद्वार (उत्तराखंड) 24 अप्रैल, 2010
प्रिय सरोवर,
नमस्ते।
बहुत दिनों से तुम्हारा पत्र न मिलने से मैं बहुत दुखी हूँ। आशा है, तुम स्वस्थ-सानन्द होगे।
तुम्हें यह जानकर बेहद प्रसन्नता होगी कि बड़ी जद्दोजहद के बाद अगले महीने की 16 तारीख को मेरी बहन सोनी की शादी तय हो गई है।
विवाह का औपचारिक निमंत्रण-पत्र अभी तक छप नहीं पाया है। शादी का कार्ड छपते ही तुम्हें भेजा जाएगा, किन्तु मैं तुम्हें इस समारोह में उपस्थित होने के लिए विशेष रूप से निमंत्रित कर रहा हूँ।
तुम 10 मई तक निश्चित रूप से आ जाओ। विवाह की पूर्व तैयारी करने में तुम्हारी उपस्थिति बहुत जरूरी है।
शेष बातें आने पर होंगी। हाँ, अपने साथ गुड़िया और बिटू को अवश्य लेते आना। चाचाजी को मेरा सादर नमन कहना।
तुम्हारी प्रतीक्षा में
तुम्हारा मित्र सीताराम शरण
डाक टिकट
सेवा में,
श्री सरोवर प्र. लाल कस्तूरी एपार्टमेंट, शुक्ला कॉलोनी, हीनू, राँची-2
9. नौकरी के लिए पार्थना पत्र
सुजानपुर तीरा, लक्ष्मी हाउस सी० 14. हिमाचल प्रदेश, 18 दिसम्बर, 2011
सेवा में,
श्रीमान् प्राचार्य महोदय,
बी.पी.एस. पब्लिक स्कूल,आशियानानगर पटना-25
विषय : गणित शिक्षक पद पर नियुक्ति हेतु।
महाशय,
15 दिसम्बर, 2011 के दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स के द्वारा ज्ञात हुआ कि आपके स्कूल में एक प्रशिक्षित गणित अध्यापक की आवश्यकता है, जो योग्यता में कम-से-कम द्वितीय श्रेणी में एम.एस-सी हो।
मैं इसके लिए अपने को एक सुयोग्य उम्मीदवार मानता हूँ। मैं समझता हूँ कि यदि मुझे सेवा का अवसर प्रदान किया गया तो मैं अपने कायों व अनुभवों से छात्र-छात्राओं एवं अधिकारी वर्ग को यथासंभव संतुष्ट करने का यत्न करूँगा।
आशाजनक उत्तर की प्रतीक्षा करते हुए …
आपका कृपाभिलाषी,
अम्बुज गौतम